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अध्याय- 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व के नोट्स कक्षा 12वीं के लिए

याद रखने वाले कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:


  •  1991मे सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीत युद्ध का अंत हो गया तथा अमेरिकी वर्चस्व की स्थापना के साथ विश्व राजनीति का स्वरूप एक धुर्वीय  हो गया।


  • अगस्त 1990 में इराक ने अपने पड़ोसी देश कुवैत पर कब्जा कर लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस विवाद के समाधान के लिए अमेरिका को इराक के विरुद्ध सैन्य बल प्रयोग की अनुमति दे दी। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह नाटकीय फैसला था। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश मैं इसे नई विश्व व्यवस्था की संज्ञा दी।


  • वर्चस्व शब्द का अर्थ है सभी क्षेत्रों जैसे सैन्य, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मात्र शक्ति केन्द्र होना।


  • अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन लगातार दो कार्यकालों तक राष्ट्रपति पद पर रहे। इन्होंने अमेरिका को घरेलू रूप से अधिक मजबूत किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा, जलवायु परिवर्तन तथा विश्व व्यापार जैसे धर्म मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित किया।


  • 11 सितंबर 2001 के दिन 19 अपहरणकर्ताओं द्वारा जिनका संबंध आतंकवादी गुट अलकायदा से माना गया, चार अमेरिकी व्यावसायिक विमानों पर कब्जा कर लिया। इनमें से दो विमानों को न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकराया गया। इसे 9/11 की घटना कहा गया। इस हमले में लगभग 3000 लोग मारे गए। इसके विरोध में अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ विश्वव्यापी युद्ध छेड़ दिया।


अध्याय- 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व के नोट्स


  • ऑपरेशन इराकी फ्रीडम को सैन्य और राजनीतिक धरातल पर और सफल माना गया क्योंकि इसमें 3000 अमेरिकी सैनिक, बड़ी संख्या में इराकी सैनिक और लगभग 50000 निर्दोष नागरिक मारे गए।


  • अमेरिकी सैन्य खर्च व सैन्य  प्रौद्योगिकी कि गुणवत्ता इतनी अधिक है कि किसी देश के लिए इस मामले में उसकी बराबरी कर पाना फिलहाल संभव नहीं है।


  • अमेरिका की  ढांचागत ताकत जिसमें समुद्री व्यापार मार्ग इंटरनेट आदि शामिल है इसके अलावा MBA की डिग्री और अमेरिकी मुद्रा डॉलर का प्रभाव इसके आर्थिक वर्चस्व को बढ़ा देते हैं।


  • ब्रेटन वुड्स प्रणाली की संस्थाएं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर भी अमेरिका का वर्चस्व है।


  • नीली जींस, मैकडोनाल्ड आदि अमेरिका के सांस्कृतिक वर्चस्व के उदाहरण है जिसमें विचारधारा, खानपान, रहन- सहन, रीति रिवाज और भाषा के धरातल पर अमेरिका का वर्चस्व कायम हो रहा है। इसके अंतर्गत जोर जबरदस्ती से नहीं बल्कि रजामंदी से बात मनवाई जाती है।


अमेरिकी शक्ति के रास्ते में तीन मुख्य ओवरोध है:


  • अमेरिका की संस्थागत बनावट, जिसमें सरकार के तीनों अंगों यथा व्यवस्थापिका, कार्यपालिका  और न्यायपालिका एक दूसरे के ऊपर नियंत्रण रखते हुए स्वतंत्र पूर्वक कार्य करते हैं।


  • अमेरिकी समाज की प्रकृति उन्मुक्त है। अमेरिका के विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखने में बड़ी भूमिका निभाती है।


  • नाटो इन देशों में बाजारमुलक अर्थव्यवस्था चलती है। नाटो में शामिल देश अमेरिका के वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते हैं।


वर्चस्व से बचने के उपाय:


  • बैंडवैगन नीति: इसका अर्थ है वर्चस्वजनित अवसरों का लाभ उठाते हुए विकास करना।


  • अपने को छिपा लेने की नीति ताकि वर्चस्व वाले देशों की नजर ना पड़े।


  • राज्येतर संस्थाएं जैसे स्वयंसेवी संगठन, कलाकार और बुद्धिजीवी मिलकर अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार करें।


भारत और अमेरिका के संबंध:


  • शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद भारत द्वारा उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति अपनाने के कारण महत्वपूर्ण हो गए। भारत अमेरिका की विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसके प्रमुख लक्षण परिलक्षित हो रहे हैं।


  • अमेरिका आज भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है।


  • अमेरिका के विभिन्न राष्ट्रीयअध्यक्षो द्वारा भारत से संबंध प्रगाढ़ करने हेतु भारत की यात्रा।


  • अमेरिका में बसे अनिवासी भारतीयों खासकर सिलिकॉन वैली में प्रभाव।


  • सामरिक महत्व के भारत अमेरिकी असैन्य परमाणु समझौते का संपन्न होना।


  • बराक ओबामा की 2015 की भारत यात्रा के दौरान रक्षा सौदों से संबंधी समझौतों का नवीनीकरण किया गया तथा कई क्षेत्रों में भारत को ऋण प्रदान करने की घोषणा की गई।


  • वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आउटसोर्सिंग संबंधी नीति से भारत के व्यापारिक हित प्रभावित होने की संभावना है।


  • वर्तमान मैं विभिन्न वैश्विक मंच पर अमेरिका के राष्ट्रपति तथा भारतीय प्रधानमंत्री के बीच हुई मुलाकातो तथा वार्ताओं को दोनों देशों के मध्य आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा सैन्य संबंधों के सुदृढ़ीकरण की दिशा में सकारात्मक संदर्भ के रूप में देखा जा सकता है।


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