समता अंश:- समता अंश से अभिप्राय उन अंशों से है जो वार्षिक लाभांश के भुगतान व समापन के समय पूंजी की वापसी में किसी तरह की पहल का अधिकार नहीं रखते।
जो पूंजी अंशो को निर्गमित करके एकत्रित की जाती है उसे अंश पूंजी कहते हैं।
प्रत्येक कंपनी के पार्षद सीमानियम में अंश निर्गमित करके प्राप्त की जाने वाली पूंजी की अधिकतम राशि की जानकारी दी जाती है जिसे हम रजिस्टर्ड पूंजी के नाम से जानते हैं।
कंपनी की जो रजिस्टर्ड पूंजी होती है उसको छोटी- छोटी इकाइयों में बांट दिया जाता है। रजिस्टर्ड पूंजी कि यही छोटी इकाइयों को हम अंश कहते हैं।
समता अंश को निर्गमित करके एकत्रित की गई पूंजी को समता अंश पूंजी कहते हैं। इसके बिना हम किसी भी कंपनी की कल्पना नहीं कर सकते हैं।
कंपनी जिन भी निवेशकों को समता अंश जारी करती है उन सभी निवेशकों को समता अंशधारी कहते हैं। समता अंशधारी ही किसी भी कंपनी के वास्तविक स्वामी होते हैं।
समता अंशो के लाभ:-
समता अंश के माध्यम से विनियोजको एवं कंपनी दोनों को ही लाभ प्राप्त होते हैं जो कि निम्नलिखित हैं:-
समता अंश द्वारा विनियोजको को लाभ:-
प्रबंधकीय क्रियाओं में हिस्सेदारी:- समता अंशधारियों को कंपनी की सभी सभा में उपस्थित होने एवं मतदान करने का पूरा अधिकार प्राप्त होता है। सभी समता अंशधारी प्रबंध में संचालकों की नियुक्ति करते हैं ,जो उनके प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि समता अंशधारी अप्रत्यक्ष रूप से प्रबंधकीय क्रियाओं में हिस्सेदार होते हैं।
लाभांश के रूप में अधिक आय:- कंपनी की आय की अंतिम प्राप्तकर्ता होने के कारण ऋणपत्रो पर ब्याज, पूर्वाधिकार अंशधारियों को लाभांश आदि का भुगतान करने के बाद जो शेष बचता है वह लाभ समता अंशधारियों को ही मिलता है। कई बार यह शेष बची राशि बहुत अधिक मात्रा में होती है, जिसका प्रभाव यह होता है कि समता अंशधारियों को लाभांश के रूप में अधिक आय भी प्राप्त हो जाता है।
पूंजीगत लाभ अर्जित करना:- कई बार कंपनी के लाभ अधिक होने के कारण समता अंश का बाजार मूल्य तेजी से बढ़ने लगता है। ऐसी स्थिति में अंशो को बेचकर लाभ अर्जित किया जा सकता है। ऐसे लाभ को पूंजीगत लाभ कहते हैं। इस प्रकार समता अंशधारियों को प्राय: प्रतिवर्ष लाभांश तो मिलता है, लेकिन कभी-कभी अंशो के बाजार मूल्य में हुई बढ़ोतरी से भी लाभ अर्जित किया जा सकता है।
कंपनी को लाभ:-
स्थाई पूंजी की व्यवस्था:- समता अंश कंपनी को दीर्घकालीन एवं स्थाई वित्त उपलब्ध करवाते हैं समता अंश पूंजी का भुगतान कंपनी को अपने जीवन काल में नहीं करना होता है।
स्थाई भार नहीं:- समता अंश पूंजी पर प्रतिफल स्वरूप कंपनी पर कोई स्थाई भार नहीं होता है। इन पर पूर्वाधिकार अंश पूंजी की भांति लाभांश की दर निश्चित नहीं होती है। सभी स्थाई व्ययों का भुगतान करने के बाद यदि कुछ शेष बचता है तभी इनको लाभांश दिया जाता है।
साख में वृद्धि:- जिस कंपनी की जितनी अधिक समता अंश पूंजी होती है बाजार में उसी कंपनी की साख भी उतनी ही अधिक होती है। इससे कंपनी की ऋण प्राप्त करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है।
बंधक की आवश्यकता नहीं:- प्राय: ऋण लेने के लिए कंपनी को अपनी संपत्तियों को बंधक अथवा गिरवी रखना पड़ता है लेकिन अंश पूंजी पर बंधक की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं होती है।
समता अंशो के दोष:-
समता अंश से विनियोजको एवं कंपनी दोनों को ही हानियां होती हैं:-
समता अंश के द्वारा विनियोजको को होने वाली हानियां:-
अनिश्चित आय:- क्योंकि समता अंशो पर दिए जाने वाले लाभांश की दर बिल्कुल भी निश्चित नहीं होती है, इसलिए समता अंशधारियों के लिए आय की अनिश्चिता बनी रहती है। यहां तक कि यह भी जरूरी नहीं कि कंपनी को लाभ होने पर उन्हें लाभांश अवश्य मिलेगा कई बार भावी वित्तीय आवश्यकताओं को देखते हुए लाभों को कंपनी में ही रोक लिया जाता है जिसकी वजह से समता अंश धारकों को किसी भी तरीके का लाभांश प्राप्त नहीं हो पाता।
मंदी काल से हानि:- मंदी काल में लाभ कम होने के कारण एक और लाभांश कम दर से मिलता है और दूसरी ओर अंशु के बाजार मूल्य में भी भारी गिरावट आती है इस प्रकार मंदी काल में समता अंशधारियों को भारी हानि होती है।
समापन से हानि:- कंपनी के समापन की दशा में समता अंश पूंजी की वापसी सबसे अंत में की जाती है यहां तक कि अधिक हानि होने की दशा में समता अंशधारियों को अपनी पूंजी से वंचित भी रहना पड़ सकता है।
सट्टेबाजी से हानि:- कुछ लोग आंसुओं में सट्टेबाजी का काम करते हैं जिसके कारण इनके बाजार मूल्य में भारी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं इससे विनियोजको को हानि की संभावना रहती है।
समता अंश द्वारा कंपनी को होने वाली हानियां:-
समता पर व्यापार के लाभ से वंचित:- यदि कंपनी केवल समता अंश जारी करती है तो समता पर व्यापार का लाभ नहीं उठाया जा सकता इसका लाभ उठाने के लिए ऋण पूंजी का होना जरूरी है।
पूंजी ढांचे में लोच शीलता का अभाव:- समता अंश को एक बार निर्गमित करके कंपनी अपने जीवन काल में इनका भुगतान नहीं कर सकती। समता अंश की यह विशेषता पूंजी ढांचे में लोचशीलता का अभाव पैदा करती है। अतः चाहते हुए भी कंपनी समता अंश पूंजी को वापस नहीं कर सकती।
प्रबंध में हस्तक्षेप से हानि:- कंपनी जितने अधिक समता अंश जारी करती है उतने ही अधिक लोगों का हस्तक्षेप कंपनी के प्रबंध में बढ़ता है। कई बार कुछ लोग स्वार्थ सिद्ध के लिए किसी कंपनी के अधिकतर अंश खरीद लेते हैं ऐसा करके वे प्रबंध को अपने हाथों में ले लेते हैं और कंपनी को मनचाहे ढंग से चलाते हैं।
अधिक निर्गमन लागते:- अन्य प्रतिभूतियों की अपेक्षा समता अंश जारी करने पर कंपनी को अधिक निर्गमन लागते वहन करनी पड़ती हैं।
कर लाभ नहीं:- ऋण पत्रों पर भुगतान किए गए ब्याज को लाभ- हानि खाते में अन्य खर्चों की भांति दिखाया जाता है जिससे कंपनी का लाभ कम होता है। परिणामतः कम आयकर का भुगतान करना पड़ता है लेकिन समता अंश पर भुगतान किए गए लाभांश पर आयकर का लाभ प्राप्त नहीं होता है क्योंकि यह कंपनी का व्यय नहीं बल्कि वितरण योग्य लाभ का हिस्सा होता है।
पूर्वाधिकार अंश:- पूर्वाधिकार अंश से अभिप्राय उन अंशों से है जो वार्षिक लाभांश के भुगतान व समापन के समय पूंजी वापसी के अधिकार में प्राथमिकता रखते हैं।
पूर्वाधिकार अंश कंपनी की दीर्घकालीन एवं मध्यकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। पूर्वाधिकार अंश धारियों को समता अंश धारियों की तुलना में निम्नलिखित दो प्राथमिकताएं प्राप्त होती हैं:-
इन्हें लाभांश का भुगतान समता अंश धारियों से पहले किया जाता है और लाभांश की दर पूर्व निश्चित होती है।
कंपनी के समापन की दशा में पूर्वाधिकार अंशधारियों की पूंजी की वापसी समता अंशधारियों से पहले की जाती है।
पूर्वाधिकार अंशो के प्रकार:-
पूर्वाधिकार अंश निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:-
परिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश:- यदि पूर्वाधिकार अंश धारियों को यह अधिकार प्राप्त है कि वे एक निश्चित अवधि के बाद अपने अंशों को समता अंशो में परिवर्तित करवा सकते हैं तो ऐसे अंशो को परिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश कहा जाता है।
अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश:- जब पूर्वाधिकार अंशधारियों को अपने अंशो को समता अंश में परिवर्तन कराने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है तो ऐसे अंशो को अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश कहा जाता है।
संचयी पूर्वाधिकार अंश:- पूर्वाधिकार अंश पर लाभांश कि दर निश्चित होती है। यदि कंपनी को किसी वर्ष लाभ ना हो तो ये अंशधारी उस वर्ष के बकाया लाभांश को अगले वर्ष प्राप्त करने का अधिकार रखते हैं। इस प्रकार जिन- जिन वर्षों में लाभ कि अपर्याप्तता के कारण इन्हें लाभांश नहीं मिल पाता है तो इनका लाभांश संचित होता रहता है। भविष्य में लाभ होने पर सर्वप्रथम इन्हें इनका बकाया लाभांश दिया जाता है और फिर चालू वर्ष के लाभांश का भुगतान किया जाता है। संचयी पूर्वाधिकार अंशो पर लाभांश का पूरा भुगतान होने के बाद विशेष लाभ में से समता अंश धारियों को लाभांश का भुगतान किया जाता है।
असंचयी पूर्वाधिकार अंश:- यदि किसी वर्ष पर्याप्त लाभ ना होने के कारण इन्हें लाभांश का भुगतान ना किया जा सके तो अगले वर्ष में केवल चालू वर्ष का लाभांश दिया जाता है अर्थात पिछले वर्ष के बकाया लाभांश को प्राप्त करने का इन्हे कोई अधिकार नहीं होता है।
भागयुक्त पूर्वाधिकार अंश:- जिन पूर्वाधिकार अंशो पर समता अंशधारियों को एक निश्चित दर से लाभांश वितरित करने के उपरांत शेष लाभ में से पुनः लाभांश लेने का अधिकार प्राप्त होता है उन्हें भागयुक्त पूर्वाधिकार अंश कहते हैं।
अभागयुक्त पूर्वाधिकार अंश:- जिन पूर्वाधिकार अंशो पर अतिरिक्त लाभ में से पुनः लाभांश प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता है उन्हें अभागयुक्त पूर्वाधिकार अंश कहते हैं।
शोध्य पूर्वाधिकार अंश:- ऐसे पूर्वाधिकार अंश जिनका कंपनी एक निश्चित अवधि के बाद भुगतान कर देती है शोध्य पूर्वाधिकार अंश कहलाते हैं।
अशोध्य पूर्वाधिकार अंश:- जिन पूर्वाधिकार अंशो का कंपनी अपने जीवन काल में भुगतान नहीं करती है उन्हें अशोध्य पूर्वाधिकार अंश कहते हैं।
पूर्वाधिकार अंशो के लाभ:-
पूर्वाधिकार अंशो से विनियोजको एवं कंपनी दोनों को लाभ प्राप्त होते हैं जो इस प्रकार हैं:-
पूर्वाधिकार अंश द्वारा विनियोजको को लाभ:-
नियमित आय:- यदि कंपनी को पर्याप्त लाभ होते हैं तो पूर्वाधिकार अंशों पर पूर्व निश्चित दर से लाभांश दिया जाता है। लेकिन लाभ पर्याप्त न होने की दशा में भी कुछ लाभांश तो मिलता ही है। यदि किसी वर्ष लाभांश बिल्कुल ही ना मिले तो संचयी पूर्वाधिकार अंशो का लाभांश जमा होता रहता है और लाभ वाले वर्ष में चालू लाभांश के साथ-साथ बकाया लाभांश का भुगतान भी कर दिया जाता है।
समापन पर पूर्वाधिकार:- कंपनी के समापन की दशा में इन्हें समता अंशधारियों से पहले भुगतान किया जाता है। अतः इन में जोखिम की मात्रा कम होती है।
अतिरिक्त लाभ में भागीदारी:- जिन वर्षों में कंपनी को अधिक लाभ होते हैं तो कंपनी भागयुक्त पूर्वाधिकार अंशों पर पूर्व- निश्चित दर से लाभांश के अतिरिक्त भी लाभांश देती है।
संबंधित प्रस्तावों पर मत का अधिकार:- पूर्वाधिकार अंशधारियों को कंपनी के प्रत्येक ऐसे प्रस्ताव पर मत देने का अधिकार होता है जिससे उनके हित प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हो।
पूर्वाधिकार अंशो से कंपनी को होने वाला लाभ:-
प्रबंध में हस्तक्षेप नहीं:- प्राय: इन्हें मत देने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है इसलिए कंपनी के प्रबंध में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
कंपनी पर कम भार:- समता अंशधारी प्राय: पूर्वाधिकार अंशों की अपेक्षा अधिक लाभांश की उम्मीद रखते हैं। समता अंशधारियों की उम्मीद कंपनी पर बोझ बनी रहती है। दूसरी और पूर्वाधिकार अंशों प निश्चित दर लाभांश का भुगतान करके कंपनी निश्चिंत हो जाती है।
बंधक की आवश्यकता नहीं:- पूर्वाधिकार अंशों के निर्गमन पर कंपनी को अपनी संपत्ति गिरवी नहीं रखनी पड़ती है जब कि ऋण पत्रों की दशा में कई बार ऐसा करना पड़ता है।
स्थाई पूंजी की प्राप्ति:- शोध्य पूर्वाधिकार अंशों को छोड़कर अन्य पूर्वाधिकार अंशों के निर्गमन से कंपनी को स्थाई पूंजी प्राप्त होती है अर्थात इस पूंजी का भुगतान कंपनी को अपने जीवन काल में नहीं करना पड़ता।
लोचदार पूंजी ढांचा:- पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन करके कंपनी अपने पूंजी ढांचे को लोचदार बना सकती है अर्थात यदि किसी समय कंपनी के पास पूंजी अधिक हो जाए तो शोध्य पूर्वाधिकार अंश ओ का भुगतान किया जा सकता है।
समता अंशधारियों को लाभ:- पूर्वाधिकार अंशो पर लाभांश की दर पूर्व निश्चित होती है। जो प्राय: बहुत अधिक नहीं होती इसका प्रभाव यह होता है कि पूर्वाधिकार अंंशधारियों को लाभांश का भुगतान करके शेष बचा सारा लाभ समता अंशधारियों को लाभांश के रूप में बांट दिया जाता है। इस प्रकार समता अंशधारियों को अधिक दर से लाभांश प्राप्त होता है।
पूर्वाधिकार अंशो की हानियां:-
पूर्वाधिकार अंशों से विनियोजको एवं कंपनी दोनों को निम्नलिखित हानियां होती हैं:-
पूर्वाधिकार अंशो द्वारा विनियोजको को होने वाली हानियां:-
अतिरिक्त लाभ में हिस्सा नहीं:- भागयुक्त पूर्वाधिकार अंशो को छोड़कर शेष पूर्वाधिकार अंशधारियों को कंपनी के अतिरिक्त लाभ में से हिस्सा प्राप्त नहीं होता। अतिरिक्त लाभ का अभिप्राय समता अंशो पर निश्चित दर से लाभांश देने के बाद बचे लाभ से है।
समापन पर अधिशेष में हिस्सा नहीं:- जब कंपनी का समापन होता है तो कंपनी की सारी संपत्तियों को बेच दिया जाता है और दायित्वों का भुगतान कर दिया जाता है। पूर्वाधिकार अंशधारियों सहित सभी को उनकी जमा राशि के बराबर भुगतान कर दिया जाता है। इसके बाद जितनी भी राशि बचती है वह सारी समता अंशधारियों को दे दी जाती है। ऐसा नहीं होता कि समता अंशो पर जमा राशि का भुगतान करके जो अधिशेष बचे उसमें से पूर्वाधिकार अंश धारियों को भी हिस्सा दिया जाए।
प्रबंधकिय गतिविधियों में हिस्सा नहीं:- पूर्वाधिकार अंशधारियों को सामान्य परिस्थितियों में मत देने का अधिकार नहीं होता है। इस प्रकार वे कंपनी के प्रबंध में भाग नहीं ले सकते।
लाभांश प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार नहीं:- किसी वर्ष लाभांश प्राप्त ना होने पर पूर्वाधिकार अंशधारी कोई वैधानिक कार्यवाही नहीं कर सकते जबकि ऋण पत्रों पर ब्याज प्राप्त ना होने पर ऐसी कार्रवाई की जा सकती है।
पूर्वाधिकार अंशो द्वारा कंपनी को होने वाली हानियां:-
स्थायी भार:- पूर्वाधिकार अंशों पर कंपनी को एक निश्चित दर से लाभांश देना पड़ता है। यह कंपनी पर एक स्थायी भार होता है।
कर लाभ नहीं:- पूर्वाधिकार अंशो पर दिया जाने वाला लाभांश कंपनी के वितरण योग्य लाभ का हिस्सा नहीं माना जाता है ना कि एक व्यय। इसलिए कंपनी को इस लाभांश पर भी आयकर देना पड़ता है।
समता अंशधारियों की असंतुष्टि:- जैसा कि स्पष्ट है कि पूर्वाधिकार अंशों पर लाभांश समता अंशो से पहले दिया जाता है। मंदीकाल में अथवा जिन वर्षों में लाभ कम होते हैं पूर्वाधिकार अंशधारियों को तो प्राय: लाभांश प्राप्त हो जाता है लेकिन समता अंशधारियों के लिए कुछ नहीं बचता. ऐसी स्थिति में कंपनी को समता अंशधारियों के असंतोष का सामना करना पड़ता है।
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