परिचय:-
Shiksha किसी भी देश के विकास में सहायता प्रदान करता है साथ ही शिक्षा किसी भी देश की आर्थिक वृद्धि मैं भी योगदान देता है।
मानव पूंजी के निर्माण में भी शिक्षा का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है शिक्षा के माध्यम से ही मानव पूंजी का निर्माण किया जा सकता है जिससे कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का अच्छे तरीके से विकास किया जा सकता है।
भारत में शिक्षा का क्षेत्र:-
भारत में सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में जो भी खर्चा किया जाता है उस खर्चे को हम दो तरीके से समझ सकते हैं:-
कुल सरकारी खर्च के प्रतिशत के रूप में:- इसका अभिप्राय यह है कि सरकार अपनी कुल खर्चे का कितना प्रतिशत भाग शिक्षा के ऊपर खर्च करती है, इससे हमें ये भी पता चलता है कि सरकार किस तरीके से शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए भी काम कर रही है। 1952 से 2014 के दौरान सरकार द्वारा शिक्षा पर किए जाने वाले खर्चे का प्रतिशत 7.92 से 15.7 तक हो गया।
सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में:- इसका अभिप्राय है कि सरकार अपनी GDP का कितना प्रतिशत भाग शिक्षा पर खर्च करती है। 1952 से 2014 के दौरान यह 0.64% से 4.13% तक बढ़ गया है।
इसके माध्यम से हमें यह पता लगता है कि किस तरीके से भारतीय सरकार शिक्षा के ऊपर खर्च करती है जिससे की शिक्षा व्यवस्था को अच्छा बनाया जा सके।
सरकारी खर्च के बारे में महत्वपूर्ण बिंदु:-
प्राथमिक शिक्षा पर अधिक खर्च:- सरकार प्राथमिक शिक्षा के ऊपर अत्याधिक खर्चा कर रही हैं तथा उच्च शिक्षा से संबंधित शैक्षणिक संस्थाएं जैसे:- कॉलेज, पॉलिटेक्निक, यूनिवर्सिटी आदि के ऊपर शिक्षा के संबंध में ज्यादा खर्चा नहीं हो रहा है।
तृतीयक शिक्षा पर व्यय महत्वपूर्ण है:- अगर औसतन देखा जाए तो सरकार के द्वारा प्राथमिक शिक्षा की तुलना मे तृतीयक शिक्षा पर ज्यादा खर्चा नहीं किया जा रहा है। अत्याधिक खर्चे का मतलब यह नहीं है कि हम प्राथमिक शिक्षा पर कम खर्चा करें और तृतीयक शिक्षा पर ज्यादा खर्चा करें महत्वपूर्ण यह है कि हमें शिक्षा के हर स्तर पर खर्चा करने की आवश्यकता है जिससे की शिक्षा व्यवस्था को सुधारा जा सके और छात्रों को उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान की जा सके।
राज्यों में शैक्षिक अवसरों में अंतर:- इसका अभिप्राय यह है कि देश के हर राज्य में शिक्षा से संबंधित सभी प्रकार के अवसरों में अंतर देखने को मिलता है। अतः यह आवश्यक है कि देश के सभी राज्यों में शिक्षा से संबंधित सभी अवसरों को एक समान किया जाए तथा देश के सभी राज्यों में शिक्षा के ऊपर अत्याधिक खर्चा किया जाए और शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाए।
शिक्षा पर अपर्याप्त व्यय:- भारत में शिक्षा के ऊपर सरकार के माध्यम से उतना खर्च नहीं किया जाता है जितना खर्च करने के लिए Education commission कहता है। Education commission ने 1964-66 में सरकार को यह Recommend किया था कि सरकार अपनी GDP का लगभग 6 % हिस्सा शिक्षा के ऊपर खर्च करें परंतु आज भी हमारे देश में हमारे GDP का केवल 4% हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया जाता है जो कि अपर्याप्त है।
मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान:-
भारत सरकार ने Tapas Majumder Committee का गठन 1998 में किया जिसके ऊपर भारत सरकार ने लगभग 1. 37 लाख करोड रुपए पिछले 10 सालों में खर्च किए है इसके पीछे सरकार का उद्देश्य है कि भारत में रहने वाले 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष के आयु वाले सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान किया जाए वह भी बिल्कुल मुफ्त।
2009 में भारत सरकार ने 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान करने के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया।
भारत में शैक्षिक उपलब्धियाँ:-
सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की वजह से भारत को शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धि मिली। उन उपलब्धियों को आप इस टेबल के माध्यम से समझ सकते हैं जिसमें आंकड़ों के हिसाब से दर्शाया गया है कि किस तरीके से भारत को शैक्षिक उपलब्धियां प्राप्त हुई:-
शैक्षिक क्षेत्र में भविष्य की संभावनाएं:-
भारतीय सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की वजह से हमें शिक्षा के क्षेत्र में बहुत उपलब्धियां मिली है और बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो शिक्षा को प्राप्त कर रहे हैं जिससे कि भारत में शैक्षिक दर बढ़ती ही जा रही है परंतु आज भी हमारे हमारे देश में कई सारे ऐसे लोग हैं जो शिक्षा से वंचित है।
इसी को मद्देनजर रखते हुए हैं भारत सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की है जिसके माध्यम से सभी को शिक्षा प्राप्त करवाया जा सके जिससे कि हमारे देश में शिक्षित लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो।
भारत में Shiksha के क्षेत्र में बढ़ोतरी तो हो रही है परंतु आज भी यह देखने को मिलता है की शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की भागीदारी काफी कम है जिसकी वजह से शिक्षा के क्षेत्र में Gender Equity नहीं हो पा रहा है अतः सरकार को यह प्रयास करना चाहिए कि शिक्षा के क्षेत्र में भी सबकी भागीदारी एक समान होनी चाहिए और लड़कियों को भी शिक्षा के क्षेत्र में समान अधिकार प्रदान करने चाहिए।
महिला शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत है:-
महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने के लिए
महिला शिक्षा महिलाओं और बच्चों की प्रजनन दर और स्वास्थ्य सेवा पर अनुकूल प्रभाव डालती है
शिक्षा के क्षेत्र में हमें यह प्रयास जब तक आगे बढ़ाना है जब तक कि पूरे देश में साक्षरता की दर 100% ना हो जाए।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले कम व्यक्ति:-
भारत के शिक्षा क्षेत्र को देखा जाए तो आज भी भारत में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं वह लोग प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त कर लेते हैं परंतु जब उच्च शिक्षा की बारी आती है तो वह लोग उच्च शिक्षा को प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
वर्ष 2011-12 में NSSO के आंकड़ों के अनुसार, स्नातक और ग्रामीण क्षेत्रों से ऊपर की पढ़ाई करने वाले युवा पुरुषों में बेरोजगारी की दर 19% थी। उनके शहरी समकक्षों में बेरोजगारी का स्तर अपेक्षाकृत कम 16% था। सबसे अधिक प्रभावित होने वाले युवा ग्रामीण महिला स्नातक थे, क्योंकि उनमें से लगभग 30% बेरोजगार हैं। इसके विपरीत, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्तर के लगभग 3-6 प्रतिशत शिक्षित युवा बेरोजगार थे।
भारतीय सरकार को जरूरत है कि उच्च शिक्षा के स्तर को बढ़ाया जाए और उच्च शिक्षा प्राप्त कराने वाले सभी Institute के Standard को भी बढ़ाया जाए जिससे कि वहां के छात्रों को किसी न किसी तरीके की skill प्राप्त हो जिससे कि वह अपने रोजगार के अवसर बना सकें।
निष्कर्ष:-
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का विकास तभी हो सकता है जब उस देश मैं मौजूद मानव पूंजी का विकास किया जाएगा या मानव पूंजी का अच्छे से निर्माण किया जाए। मानव पूंजी के निर्माण से किसी भी देश को आर्थिक एवं सामाजिक दोनों रूप में लाभ प्राप्त होते है।
सरकार को यह जरूरत है कि वह Shiksha के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा अपना योगदान दें। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की भी आवश्यकता है अतः इसके ऊपर भी ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि जब शिक्षा के क्षेत्र में सुधार किया जाएगा तो उसका लाभ यह होगा कि शिक्षा का स्तर सुधरेगा जिससे कि हमारे देश को आने वाले समय में उसका लाभ प्राप्त होगा।
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