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Bima kise kehte Hai - बीमा किसे कहते हैं

" Bima वह विधि है जो एक व्यक्ति के जोखिम को अनेक व्यक्तियों में विभाजित करती है।"


Bima Anubandh kya hai

Bima का परिचय:- 


मानव का जीवन अनिश्चित होता है। मानव जीवन ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाले प्रत्येक जीव एवं वस्तु पर जीवन की अनिश्चितता की बात लागू होती है। मानव का जीवन भी अनिश्चित होने के कारण मानव या उसके परिवार को इस क्षति का सामना करना पड़ता है। 


हम संपत्ति की क्षति को पूरी तरीके से समाप्त कर सकते हैं परंतु हम मानव के जीवन की क्षति समाप्त करना असंभव है परंतु हम मृतक के परिवार को आर्थिक रूप से सहायता जरूर प्राप्त करवा सकते हैं।


मानव जीवन व संपत्ति की क्षति से होने वाली हानि को कम अथवा समाप्त करने का एक माध्यम है जिसे हम Bima के नाम से जानते हैं।


Bima ke kuch mukhya Shabdavali :- 


  • बीमक अथवा बीमाकर्ता:- बीमा करने वाले अर्थात दूसरे के जोखिम का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेने वाले को हम बीमाकर्ता कहते हैं।


  • बीमित अथवा बीमाधारी:- जिस का बीमा किया जाता है अर्थात जिसकी जोखिम का उत्तरदायित्व बीमाकर्ता अपने ऊपर लेता है उसे हम बीमाधारी कहते हैं।


  • प्रीमियम:- बीमा कर्ता द्वारा अपनी सेवाएं प्रदान करने के फलस्वरुप जो शुल्क लिया जाता है उसे प्रीमियम कहते हैं।


  • बीमा- पत्र:- वह प्रलेख जिसमें बीमा समझौते की सभी शर्तों को लिखा जाता है उसे बीमा पत्र कहते हैं।


  • बीमित राशि:- जितनी राशि का बीमा कराया जाता है उसे बीमित राशि कहते हैं।


बीमा की परिभाषा:- 


Bima एक अनुबंध अथवा एक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत एक निश्चित प्रतिफल के बदले में एक पक्षकार  दूसरे पक्षकार पर किसी विशेष घटना के घटित होने अथवा निश्चित अवधि के समाप्त होने पर एक निश्चित धनराशि देने का वचन देता है।



बीमा की विशेषताएं :- 


  • दो पक्षकार:-  बीमा अनुबंध के अंतर्गत दो पक्षकार होते हैं, एक बीमा करने वाला जिसे बीमाक या बीमा कर्ता कहते हैं, तथा दूसरा बीमा करवाने वाला जिसे बीमित या  बीमाधारी कहते हैं।


  • पूर्ण सद्भावना पर आधारित:-  बीमा की एक प्रमुख विशेषता यह है कि पूर्ण सद्भावना पर आधारित होता है। पूर्ण सद्भावना का अभिप्राय इस बात से है कि बीमाधारी बीमे से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों की सूचना स्वंय ही बीमा कंपनी को दे देगा।


  • सहकारी व्यवस्था पर आधारित:-  सहकारिता का मूल मंत्र है- प् प्रत्येक सबके लिए और प्रत्येक के लिए इसके अंतर्गत लोग सामूहिक हित के लिए स्वेच्छा से एकत्रित होते हैं। बीमा व्यवस्था भी इसी सिद्धांत पर आधारित है इसके अंतर्गत लोग बीमा कंपनी के पास थोड़ा- थोड़ा शुल्क जमा कराकर एक बड़े कोष का निर्माण करते हैं। कोष के किसी सदस्य को हानि होने पर उसकी क्षतिपूर्ति एकत्रित कोष में से कर दी जाती है अतः बीमा भी एक सहकारी व्यवस्था है।


  • संभावित जोखिम से मुक्ति:- बीमा एक ऐसी व्यवस्था है जो मानव जीवन व संपत्ति को संभावित जोखिम से मुक्ति प्रदान करती है।


  • संभावित हानि का हस्तांतरण:- बीमा एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत संभावित हानि को एक पक्ष से दूसरे पक्ष को स्थानांतरित किया जा सकता है।


  • प्रीमियम का भुगतान:- बीमा कंपनी बीमित के जोखिम का उत्तरदायित्व बीमित द्वारा भुगतान की गई धनराशि के बदले में लेती है जिसे प्रीमियम कहते हैं।


  • घटना का घटित होना:- बीमा करवाने का उद्देश्य किसी घटना के घटित होने पर ही पूरा होता है अर्थात दावे की राशि का भुगतान तभी प्राप्त होता है जब एक निश्चित घटना घटित हो जाए। संपत्ति के बीमे की दशा में उसका क्षतिग्रस्त होना घटना का घटित होना कहा जाएगा। दूसरी ओर जीवन बीमा की दशा में एक निश्चित तिथि से पूर्व बीमाधारी  की मृत्यु हो जाना और उस स्थिति तक भी बीमाधारी की मृत्यु ना होना दोनों ही स्थितियों को घटना का घटित होना माना जाएगा क्योंकि दोनों ही दशाओं में बीमाधारी को एक निश्चित धनराशि प्राप्त होती है।


  • सुरक्षा एवं विनियोग:- जीवन बीमा में सुरक्षा एवं विनियोग दोनों तत्व निहित होते हैं, जबकि शेष बीमा अनुबंधों में केवल सुरक्षा तत्व निहित होता है।


  • स्वामित्व जरूरी नहीं:-  बीमा करवाने के लिए संपत्ति पर स्वामित्व होना जरूरी नहीं है अर्थात एक स्वामी अपने माल का तो बीमा करवा ही सकता है लेकिन कुछ परिस्थितियों में वह ऐसे माल का भी बीमा करवा सकता है जिसका वह स्वामी नहीं है। जैसे बंधक पर उधार देने वाला बंधक रखी गई संपत्ति का बीमा करवा सकता है।


बीमा के प्रकार:- 


जब बीमा व्यवसाय प्रथम बार प्रचलन में आया तो दो प्रकार की बीमा- जीवन बीमा एवं संपत्ति बीमा ही प्रचलित हुए थे लेकिन आज कोई जोखिम ऐसा नहीं है जिसका बीमा ना कराया जा सके। 


Bima ke Parkar  कुछ इस प्रकार हैं:- 


जीवन बीमा:-  यह बीमा व्यवसाय का सर्वाधिक प्रचलित प्रकार है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का बीमा करा सकता है। जीवन बीमा में बीमाधारी को निश्चित प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है। जिसकी फल स्वरुप निश्चित अवधि से पूर्व उसकी मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी को अथवा निश्चित अवधि तक जीवित रहने पर स्वयं उसे बीमा कंपनी से पूर्व निश्चित रकम प्राप्त होती है। Jivan Bima  में सुरक्षा एवं विनियोग दोनों तत्व विद्यमान होते हैं।


सामान्य बीमा:- जीवन बीमा के अतिरिक्त अन्य सभी बीमा अनुबंध सामान्य बीमा के अंतर्गत आते हैं। मुख्यता अग्नि बीमा, चोरी बीमा व सामुद्रिक बीमा को सम्मिलित किया जाता है।


Samany Bima को हम निम्नलिखित प्रकार से विभाजित करते हैं:- 


  • अग्नि बीमा:-  Agni Bima के अंतर्गत बीमा कंपनी बीमा धारी को निश्चित प्रीमियम के बदले यह आश्वासन देती है कि यदि उसकी संपत्ति को अग्नि से क्षति होती है तो वह बीमे की राशि एक क्षति को पूरा करेगी। यदि बीमा अवधि में अग्नि से कोई क्षति ना हो तो बीमा अवधि पूरी होने पर बीमाधारी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता। अतः अग्नि बीमा में केवल सुरक्षा तत्व विद्यमान होता है विनियोग तत्व नहीं होता।


  • चोरी बीमा:-  Chori Bima बीमाधारी को संपत्ति की चोरी से होने वाली क्षति से सुरक्षा प्रदान करता है। बीमा कंपनी बीमित राशि तक संपत्ति की चोरी से होने वाली क्षति को पूरा करने का वचन देती है। यह अनुबंध प्रायः 1 वर्ष की अवधि के लिए होता है। यदि बीमा अवधि में बीमाधारी को संपत्ति की चोरी से कोई क्षति ना हो तो अवधि पूरी होने पर बीमा से उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। अतः चोरी बीमा में केवल सुरक्षा तत्व विद्यमान होता है विनियोग तत्वों नहीं।


  • सामुद्रिक बीमा:- विदेशी व्यापार समुद्र मार्ग से किया जाता है। समुद्र के अंदर जहाज और माल दोनों पूर्णत: असुरक्षित होते हैं। एक जहाज के क्षतिग्रस्त हो जाने से कई करोड़ों रुपए की संपत्ति नष्ट हो जाती है। Samudrik Bima इस प्रकार की हानि से सुरक्षा प्रदान करता है, इसमें भी केवल सुरक्षा तत्व होता है, विनियोग तत्व नहीं।


Bima Anubandh kya hai

Bima ke Siddhant:-


बीमा के निम्नलिखित सिद्धांत है:- 


  • परम सद्विश्वास का सिद्धांत:- इसका अभिप्राय यह है कि बीमा अनुबंध के दोनों पक्षकारों द्वारा कोई भी महत्वपूर्ण तथ्य छुपाया नहीं जाना चाहिए।


  • बीमा योग्य हित का सिद्धांत:- Bima yogya  hit ka Siddhant से अभिप्राय यह है कि बीमा करवाने वाले तथा बीमा की विषय- वस्तु के मध्य ऐसा संबंध होना चाहिए की विषय- वस्तु की सुरक्षा से बीमा करवाने वाले को लाभ हो तथा उसकी असुरक्षा से हानि।


  • क्षतिपूर्ति का सिद्धांत:- इसका अभिप्राय यह है कि बीमित केवल वास्तविक हानि के लिए क्षति पूर्ति प्राप्त कर सकता है और वह बीमा से लाभ अर्जित नहीं कर सकता।


  • आश्वासन का सिद्धांत:- इसका अभिप्राय यह है कि बीमित बीमा अनुबंध की सभी स्पष्ट शर्तों का पालन करेगा।


  • अंशदान का सिद्धांत:- इसका अभिप्राय यह है कि यदि एक ही विषय वस्तु ( जीवन को छोड़कर) का एक से अधिक बीमाकर्ताओं से बीमा करवाया गया है, तो वास्तविक हानि को सभी बीमाकर्ताओं में विभक्त किया जाएगा।


  • अधिकार समर्पण का सिद्धांत:- इसका अभिप्राय यह है कि जब बीमा कर्ता किसी क्षति से संबंधित दावे का भुगतान कर देता है। तो बीमा की विषय वस्तु से संबंधित सभी अधिकार Bima Karta  को हस्तांतरित हो जाते हैं।


  • हानि को न्यूनतम करने का सिद्धांत:- इसका अभिप्राय यह है कि बीमा धारी का यह कर्तव्य है कि वह बीमा के विषय वस्तु की क्षति से होने वाली हानि को न्यूनतम करने का प्रयास करेगा भले ही उसका बीमा करवाया हुआ है।


  • निकटतम कारण का सिद्धांत:- इसका अभिप्राय यह है कि हानि के लिए जिम्मेदारी निश्चित करने के लिए हानि के निकटतम कारण को देखा जाता है ना कि दूरस्थ कारण को।


Bima Anubandh Ke Prakar:-


बीमा धारी और बीमा कर्ता के मध्य परस्पर वचनों के फलस्वरूप उत्पन्न समझौते को बीमा अनुबंध कहते हैं। बीमधारी निश्चित प्रीमियम के भुगतान का वचन देता है और बीमाकर्ता प्रीमियम के प्रतिफल स्वरूप उसकी क्षतिपूर्ति का वचन देता है। 


बीमा अनुबंध दो प्रकार के होते हैं:- 


  • क्षतिपूरक अनुबंध:- जीवन बीमा अनुबंध को छोड़कर शेष सभी प्रकार के बीमा अनुबंध क्षतिपूर्ति के अनुबंध होते हैं। अग्नि बीमा, सामुद्रिक बीमा और चोरी बीमा यह सभी बीमा क्षतिपूर्ति अनुबंध से संबंधित है। इनके अंतर्गत बीमाधारी संपत्ति में अपने हित की सुरक्षा का अनुबंध बीमा कंपनी से कराता है और बीमा कंपनी एक निश्चित प्रीमियम के प्रतिफलस्वरूप क्षतिपूर्ति का दायित्व अपने ऊपर लेती है। ये एसे अनुबंध हैं जिनमें हानि की वास्तविक राशि की गणना की जा सकती है और बीमा कंपनी इसी राशि का भुगतान करती है।


  • जीवन बीमा अनुबंध:- यह अनुबंध क्षतिपूर्ति का अनुबंध नहीं है क्योंकि बीमाधारी का जीवन अमूल्य होता है और उसकी मृत्यु से होने वाली आर्थिक क्षति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसके अंतर्गत बीमा कंपनी प्रीमियम के बदले एक निश्चित अवधि बीत जाने पर यदि बीमाधारी जीवित रहता है तो स्वयं उसे अन्यथा उसके द्वारा नामांकित व्यक्ति को पूर्व निश्चित धनराशि का भुगतान करती है। Jivan Bima में सुरक्षा एवं विनियोग दोनों तत्व निहित होते हैं। 


पुनर्बीमा :-  Punar Bima से अभिप्राय बीमा से है जिसके अंतर्गत एक बीमा कंपनी किसी दूसरी बीमा कंपनी को अपना जोखिम हस्तांतरित करने के उद्देश्य से बीमा करवाती है।


दोहरा बीमा:-  Dohara Bima से अभिप्राय ऐसे बीमा से है‌ जिसके अंतर्गत एक ही जोखिम  का बीमा दो या दो से अधिक बीमा कंपनी से करवाया जाता है।


Bima kyon avashyak hai? 


जीवन के हर क्षेत्र में बीमा का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। हम बीमा के माध्यम से होने वाली हानियां को न्यूनतम कर सकते हैं, साथ ही साथ उसके माध्यम से होने वाली क्षति की क्षतिपूर्ति करने में आसानी होती है।


  • सुरक्षा प्रदान करना:-  बीमे का मुख्य लाभ सुरक्षा प्रदान करना है। एक व्यक्ति अपने जीवन बीमा करा कर भविष्य की चिंताओं से मुक्त हो जाता है, ठीक उसी प्रकार व्यवसाय में माल ,गोदाम, जहाज आदि का बीमा करा कर बड़ी मात्रा में संभावित हानि से मुक्त हुआ जा सकता है।


  • विनियोग तत्व:-  जीवन बीमा में सुरक्षा के साथ-साथ विनियोग तत्वों का लाभ भी प्राप्त होता है। इसके अंतर्गत Premium की राशि बीमा कंपनी के पास जमा होती रहती है और पॉलिसी की अवधि के पूरे होने पर बीमाधारी के जीवित रहने पर पॉलिसी की राशि बोनस सहित वापिस कर दी जाती है। यह बोनस प्रीमियम की जमा राशि पर एक तरह से ब्याज के रूप में प्राप्त होता है।


  • जोखिम का वितरण:-  बीमे के द्वारा एक व्यक्ति की जोखिम अनेक व्यक्ति में विभाजित हो जाती है।


  • ऋण सुविधा:- बीमा से ऋण सुविधा प्राप्त होती है। इस सुविधा का अर्थ यह है कि अगर कोई व्यवसायिक ऋण लेना चाहता है तो वह कंपनी के पास अपने मान को बंधक के रूप में रख कर ऋण प्राप्त कर सकता है।


  • बचत को प्रोत्साहन:-  बीमा अनुबंध के अंतर्गत एक निश्चित समय के बाद बीमा किस्त जमा करनी होती है। किस्त समय पर जमा ना होने पर जुर्माना लगने और यहां तक की पॉलिसी जब्त होने का डर रहता है। किस्त की अनिवार्यता को देखते हुए प्रत्येक बीमाधारी किसी भी तरह बचत करके किस्त का भुगतान करने का प्रयास करता है। इस प्रकार बीमा से बचत को प्रोत्साहन मिलता है।


  • देश के आर्थिक विकास में सहायक:- बीमा देश के आर्थिक विकास में सहायक होता है। बीमा कंपनी को प्रीमियम से बड़ी मात्रा में धन प्राप्त होता है। एकत्रित धन को बीमा कंपनी बड़े- बड़े उद्योगों में विनियोग करती है। जिसे देश में उद्योगों  का विकास होता है। उद्योगों का विकास देश के आर्थिक विकास का सूचक होता है।


  • अधिक रोजगार:-  Bima व्यवसाय लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर भी प्रदान करता है।यह व्यवसाय एक बड़े पैमाने पर होता है, जिससे बहुत सारे लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।


  • आयकर में छूट:-  बीमाधारी जीवन Bima पर जो राशि बीमा कंपनी को प्रीमियम के रूप में देता है। उस राशि पर उसे एक निश्चित सीमा अवधि तक आयकर में कटौती मिलती है।

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