1. Law of supply:
( पूर्ति का नियम)
पूर्ति का नियम मुख्य रूप से यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत और उसकी पूर्ति की जाने वाली मात्रा के बीच प्रत्यक्ष रूप से संबंध होता है।
. पूर्ति का नियम यह बताता है कि जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो बाजार में उस वस्तु की पूर्ति भी अधिक हो जाती है एवं इसके विपरीत जब किसी वस्तु की कीमत में कमी आती है तो बाजार में वस्तु की पूर्ति में भी कमी आ जाती है।
* पूर्ति के नियम की कुछ मान्यताएं हैं जिसके आधार पर हम पूर्ति का नियम लागू कर सकते हैं:
. अन्य वस्तुओं की कीमत स्थिर होनी चाहिए।
. तकनीक में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
. उत्पादन के समय जितने भी साधनों का प्रयोग किया जाता है उनकी कीमत में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए अर्थात उनकी कीमत समान रहनी चाहिए।
. कर की नीति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
यह सारे पूर्ति के नियम की कुछ मान्यताएं हैं यदि यह सब मान्यताएं इसी प्रकार से रहेंगी तो हम पूर्ति के नियम को काफी सफलतापूर्वक लागू कर पाएंगे परंतु यदि इन सभी मान्यताओं पर ध्यान नहीं दिया जाएगा कि अथवा इनके अनुसार नहीं चला जाएगा तो पूर्ति का नियम लागू नहीं कर पाएंगे।
2. पूर्ति के नियम के कारण:
* लाभ का उद्देश्य:
कोई भी उत्पादक जब किसी वस्तु की पूर्ति करता है अथवा उसका उत्पादन करता है तो उस का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है। जब एक वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है एवं उस वस्तु के उत्पादन में प्रयोग किए जाने वाले सभी आगतों की कीमत में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है तो इसके परिणाम स्वरूप उस उत्पादक को अधिक लाभ होता है जिसकी वजह से वह उत्पादन में वृद्धि करता है और वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती हैं।
. परंतु जब किसी वस्तु की कीमत में कमी आ जाती है अथवा उसके उत्पादन में प्रयोग किए जाने वाले आगतों की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो उस समय किसी भी उत्पादों को लाभ नहीं हो पाता है जिसकी वजह से वस्तु की पूर्ति में कमी आ जाती है।
* फर्मों की संख्या में परिवर्तन:
जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो इसकी वजह से कई सारे उत्पादक बाजार में प्रवेश करने के लिए तैयार होते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पूर्ति में वृद्धि होती है क्योंकि जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो किसी भी उत्पादक के लिए लाभ को अधिक करने का एक बहुत ही अच्छा अवसर प्राप्त हो जाता है जिससे बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
. फर्मों की संख्या में वृद्धि होने की वजह से किसी भी उत्पाद की पूर्ति में भी वृद्धि होने लग जाती है परंतु जब किसी भी वस्तु की कीमत में कमी आती है इसकी वजह से उत्पादक को लाभ कब प्राप्त होता है तो बाजार में फर्मों की संख्या कम हो जाती है जिसके परिणाम स्वरुप पूर्ति में भी कमी आ जाती है।
* स्टॉक में परिवर्तन:
जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो कई सारे विक्रेता अपने स्टॉक में से वस्तु की अधिक पूर्ति करने के लिए तैयार हो जाते हैं परंतु जब किसी भी वस्तु की कीमत में कमी आ जाती है तो कई सारे विक्रेता अपने स्टॉक में से वस्तुओं की पूर्ति नहीं करते हैं वह इसे भविष्य के लिए बचा कर रखते हैं कि भविष्य में कीमत में वृद्धि होने पर इन सभी वस्तुओं की पूर्ति करेंगे जिससे कि वह वर्तमान समय में स्टॉक में वृद्धि करने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं।
3. पूर्ति के नियम के अपवाद:
* भावी प्रत्याशा:
यदि कोई विक्रेता किसी भी वस्तु की कीमत के संबंध में भावी प्रत्याशी करता है कि भविष्य में इस वस्तु की कीमत में कमी आ जाएगी तो वर्तमान में वह उन सभी वस्तुओं को कम कीमत पर ही बेच देता है जिसकी वजह से पूर्ति का नियम इस स्थिति में सही रूप से लागू नहीं हो पाता है।
. परंतु जब किसी विक्रेता को ऐसा लगता है कि भविष्य में इस वस्तु की कीमत में वृद्धि होगी तो वह वर्तमान में वस्तु की पूर्ति कम करता है ताकि भविष्य में इस वस्तु की ज्यादा से ज्यादा पूर्ति करके अधिक लाभ अर्जित कर सकें।
* कृषि वस्तुएं:
पूर्ति का नियम मुख्य रूप से कृषि की वस्तुओं पर लागू नहीं हो पाता है क्योंकि यह सारी वस्तुएं मौसम की स्थिति पर निर्भर करती हैं। यदि मौसम की वजह से कृषि उत्पादित की जाने वाली वस्तुएं खराब हो जाती है अथवा इनका उत्पादन कम हो जाता है तो हम कुछ भी करके ऊंची कीमत पर इन वस्तुओं के उत्पादन को अथवा पूर्ति को नहीं बढ़ा सकते हैं।
. इस स्थिति में पूर्ति का नियम विफल हो जाता है।
* नाशवान वस्तुएं:
नाशवान वस्तुएं मुख्य रूप से सब्जी , फल आदि आते हैं इन सभी वस्तुओं की कीमत कम होने पर भी विक्रेता इनको अधिक मात्रा में बेचने के लिए तैयार होते हैं क्योंकि इन वस्तुओं को कोई भी विक्रेता लंबे समय तक अपने पास नहीं रख सकता है।
. अतः इस स्थिति में भी पूर्ति का नियम विफल हो जाता है।
* दुर्लभ वस्तुएं:
दुर्लभ वस्तुएं वस्तुएं होती हैं जिनको पाना काफी कठिन हो जाता है या फिर उनका निर्माण करना काफी कठिन हो जाता है। वस्तु की कीमत में कितनी भी वृद्धि करने पर इनकी पूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता है क्योंकि यह वस्तु में काफी कम मात्रा में उपलब्ध होती हैं।
4. पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन:
पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन से अभिप्राय उस स्थिति से है जब अन्य कारकों के स्थिर रहने पर जब एक वस्तु की पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन उसकी स्वयं की कीमत में परिवर्तन के कारण होता है तो उसे हम पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन कहते हैं।
* पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन दो तरीके से होता है:
. पूर्ति में विस्तार:
पूर्ति में विस्तार से अभिप्राय यह है कि जब अन्य कारक स्थिर रहते हैं और किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि के कारण उसकी मात्रा में भी वृद्धि हो जाती है तो उसे पूर्ति का विस्तार कहते हैं।
. पूर्ति में संकुचन:
सऊदी में संकुचन से अभिप्राय उस स्थिति से है जब अन्य कारक स्थिर रहने पर किसी वस्तु की कीमत में कमी होने की वजह से जब उस वस्तु की पूर्ति की मात्रा में भी कमी हो जाती है तो उसे हम पूर्ति में संकुचन कहते हैं।
5. पूर्ति वक्र में परिवर्तन:
जब अन्य कारक स्थिर होते हैं पूर्ति वक्र की कीमत और किसी वस्तु की पूर्ति के मात्रा के बीच के संबंध को दर्शाया जाता है परंतु जब किसी भी कारक में परिवर्तन होता है तो उसकी वजह से पूर्ति का वक्र भी परिवर्तित हो जाता है।
* पूर्ति वक्र में खिसकाव निम्नलिखित कारणों से होता है:
. अन्य वस्तु की कीमत में परिवर्तन हो जाने की वजह से।
. उत्पादन में प्रयोग किए जाने वाले साधनों की कीमत में परिवर्तन होने की वजह से।
. कर की नीति में परिवर्तन होने की वजह से।
. तकनीक किस दिन परिवर्तन होने की वजह से।
. किसी फर्म के उद्देश्य में परिवर्तन होने की वजह से।
* पूर्ति में वृद्धि:
पूर्ति में वृद्धि से अभिप्राय यह है कि जब किसी वस्तु में अपनी स्वयं की कीमत के अलावा किसी अन्य कारक के कारण की वजह से उसकी पूर्ति में वृद्धि होती है तो उसे हम पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।
* पूर्ति में कमी:
पूर्ति में कमी से अभिप्राय यह है कि जब किसी वस्तु में अपनी स्वयं की कीमत के अलावा किसी अन्य कारक के कारण से उसकी हिंदी में कमी आती है तो उसे हम पूर्ति में कमी कहते हैं।
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