वाणिज्य किसे कहते हैं ?
वाणिज्य का अभिप्राय उन सभी क्रियाओं के योग से है जो किसी वस्तु एवं सेवा के आदान-प्रदान में उत्पन्न होने वाली सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करते हैं। वह समस्याएं किसी व्यक्ति , स्थान समय , जोखिम या आदि की बाधाएं हो सकती हैं जो वाणिज्य के माध्यम से दूर की जाती है।
वाणिज्य के अंग :
* वाणिज्य के अंग दो प्रकार के हैं:
* व्यापार ( Trade)
* व्यापार की सहायक क्रियाएं( Auxiliaries to Trade)
व्यापार किसे कहते हैं ?
व्यापार से अभिप्राय एक ऐसी क्रिया से है जो क्रेता और विक्रेता द्वारा लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसके अंतर्गत वह वस्तु का क्रय एवं विक्रय करते हैं जिससे कि अधिक लाभ अर्जित कर सकें इस पूरी प्रक्रिया में केता विक्रेताओं द्वारा किए गए कार्य को व्यापार कहा जाता है व्यापार में किसी व्यापारी का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
व्यापार की सहायक क्रियाएं :
व्यापार की सहायक क्रिया से अभिप्राय उन क्रियाओं से है जो व्यापार में उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार की समस्याओं को दूर करने में सहायता प्रदान करते हैं। व्यापार की सहायक क्रिया किसी भी व्यापार के लिए काफी उपयोगी होती हैं क्योंकि इस के माध्यम से व्यापार में बाधाओं को दूर किया जा सकता है।
व्यापार के प्रकार
. व्यापार की दो प्रकार हैं:
* देशी व्यापार:
जब वस्तु का क्रय विक्रय किसी देश की सीमाओं के अंदर ही होता है तो उसे देशी व्यापार कहा जाता है यह निम्न प्रकार के हैं:
. स्थानीय व्यापार:
स्थानीय व्यापार वह व्यापार होता है जो मुख्य रूप से गांव, कस्बे या जिला तक ही सीमित रहता है। इस व्यापार के अंतर्गत मुख्य रूप से दैनिक उपभोग एवं नाशवान प्रकार की वस्तुएं का ही व्यापार किया जाता है।
. राज्य व्यापार:
जब कोई स्थानीय व्यापारी स्थानीय व्यापार से ऊपर उठकर अपने व्यापार को राज्य स्तर तक ले जाता है , तो उसे राज्य व्यापार के रूप में जाना जाता है।
. अंतर राज्य व्यापार:
अंतर राज्य व्यापार से ऊपर है उस व्यापार से है जो व्यापार एक ही देश के विभिन्न राज्यों के मध्य होता है तो उसे अतः राज्य
व्यापार कहते हैं।
* विदेशी व्यापार:
विदेशी व्यापार से अभिप्राय है उसमें व्यापार से है जब एक देश में रहने वाले व्यापारी अपने माल का क्रय-विक्रय देश की सीमाओं के बाहर किसी दूसरे देश करने लग जाते हैं तो उसे हम विदेशी व्यापार कहते हैं। आज के समय में विदेशी व्यापार काफी आवश्यक है किसी भी देश के लिए क्योंकि कोई भी ऐसा देश नहीं है जो आज के समय में हर प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन स्वयं कर सकता है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है इसलिए आज के समय में विदेशी व्यापार पर हर एक देश किसी न किसी तरीके से निर्भर अवश्य है।
* विदेशी व्यापार के अंग:
विदेशी व्यापार के तीन अंग हैं:
. आयात व्यापार:
आयात व्यापार से अभिप्राय उस व्यापार से है जब एक देश का व्यापारी किसी दूसरे देश के व्यापारी से माल को क्रय करता है तो उसे आयात व्यापार करते हैं।
. निर्यात व्यापार:
निर्यात व्यापार स्प्रे उस व्यापार से है जब एक देश का व्यापारी किसी दूसरे देश के व्यापारी से माल को विक्रय करता है तो उसे निर्यात व्यापार कहते हैं।
. पुनः निर्यात व्यापार:
पुनः निर्यात व्यापार से अभिप्राय उस व्यापार से है जब एक देश द्वारा माल किसी अन्य देश से आयात करके किसी तीसरे देश को निर्यात कर दिया जाता है तो उस व्यवहार को हम पुनः निर्यात व्यापार के नाम से जानते हैं।
व्यापार की सहायक क्रियाएं:
व्यापार की सहायक क्रिया निम्नलिखित है:
* मध्यस्थ
* परिवहन एवं संदेश वाहन
* संग्रहण
* बीमा
* बैंकिंग
* विज्ञापन
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